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यात्रा वृत्तांत >> आखिरी चट्टान तक

आखिरी चट्टान तक

मोहन राकेश

प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :112
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 7214
आईएसबीएन :9789355189332

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"विचारों की गहराई और यात्रा के अनुभवों का संगम : मोहन राकेश का आख़िरी चट्टान तक यात्रा-वृत्तान्त"

दिशाहीन दिशा


घर में चलते समय मन में यात्रा को कोई बनी हुई रूप-रेखा नहीं थी। बस एक अस्थिरता ही थी जो मुझे अन्दर से धकेल रही थी। समुद्र तट के प्रति मन में एक ऐसा आकर्षण था कि मेरी यात्रा की कल्पना में समुद्र का विस्तार अनायास ही आ जाता था। बहुत बार सोचा था कि कभी समुद्र-तट के साथ-साथ एक लम्बी यात्रा करूँगा, परन्तु यात्रा के समय और साधन साध-साथ मेरे पास कभी नहीं रहते थे। उन दिनों नौकरी छोड़ दी थी और पास में कुछ पैसे भी थे। इसलिए मैंने तुरन्त चल देने का निश्चय कर लिया। पहले सोचा कि सीधे कन्याकुमारी चला जाऊँ और वहाँ से रेल मोटर या नाव, जहाँ जो मिले, उसमें पश्चिमी समुद्र-तट के साथ-साथ गोआ या बम्बई तक की यात्रा करूँ। रास्ते में जहाँ मन हुआ, वहीं कुछ दिन रह जाऊँगा। शिमला में हमारे स्कूल में कई लोग दक्षिण भारत के थे। उनमें से एक ने कहा था कि रहने के लिए कनानोर (कण्णूर-बहुत अच्छी जगह है। एक और का कहना था कि मैं एक बार कोइलून पहुँच जाऊँ, तो वहाँ से और कहीं जाने को मेरा मन नहीं होगा। दिल्ली में एक मित्र ने कहा था कि पश्चिमी समुद्र-तट पर पंजिम (गोआ) से सुन्दर दूसरी जगह नहीं है। वहाँ खुला समुद्र-तट है एक आदिम स्पर्श लिए प्राकृतिक रमणीयता है और सबसे बड़ी बात यह है कि जीवन बहुत सस्ता है-रहने-खाने की हर सुविधा वहाँ बहुत थोड़े पैसों में प्राप्त हो सकती है। मेरे लिए सभी जगहें अपरिचित थीं, इसलिए मुझे सभी में आकर्षण लग रहा था। कोचिन, कण्णूर, मंगलूर, गोआ। अलेप्पी के बैक वाटर्ज़ और नीलगिरि की पहाड़ियाँ। सबके प्रति मेरे मन में एक-सी आत्मीयता जागती थी। जैसे कि मेरा उन सब स्थानों से कभी का घनिष्ठ सम्बन्ध रहा हो। सबसे अधिक आत्मीयता कन्याकुमारी के तट को लेकर महसूस होती थी। परन्तु एक घने शहर की छोटी-सी तंग गली में पैदा हुए व्यक्ति के लिए उस विस्तार के प्रति ऐसी आत्मीयता का अनुभव करने का आधार क्या हो सकता था? केवल विपरीत का आकर्षण?

घर से चलते समय कुछ निश्चय नहीं था कि कब, कहाँ, कितने दिन रहूँगा। हाँ, चलने तक इतना निश्चय कर लिया था कि पहले सीधे कन्याकुमारी न जाकर बम्बई होता हुआ गोआ चला जाऊँगा और वहाँ से कन्याकुमारी की ओर यात्रा प्रारम्भ करूँगा। यह इसलिए चाहता था कि मेरी यात्रा का अन्तिम पड़ाव कन्याकुमारी हो...।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रकाशकीय
  2. समर्पण
  3. वांडर लास्ट
  4. दिशाहीन दिशा
  5. अब्दुल जब्बार पठान
  6. नया आरम्भ
  7. रंग-ओ-बू
  8. पीछे की डोरियाँ
  9. मनुष्य की एक जाति
  10. लाइटर, बीड़ी और दार्शनिकता
  11. चलता जीवन
  12. वास्को से पंजिम तक
  13. सौ साल का गुलाम
  14. मूर्तियों का व्यापारी
  15. आगे की पंक्तियाँ
  16. बदलते रंगों में
  17. हुसैनी
  18. समुद्र-तट का होटल
  19. पंजाबी भाई
  20. मलबार
  21. बिखरे केन्द्र
  22. कॉफ़ी, इनसान और कुत्ते
  23. बस-यात्रा की साँझ
  24. सुरक्षित कोना
  25. भास्कर कुरुप
  26. यूँ ही भटकते हुए
  27. पानी के मोड़
  28. कोवलम्
  29. आख़िरी चट्टान

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